वह दिन था,
जब भावों से ओत- प्रोत
मेरा ह्रदय,
सम्प्रेअषित करता था
सही संवेदनाओं को.
वह दिन था,
जब मेरा कुत्ता मारा था,
तिन दिन तक
अन्न जल त्याग कर
मैंने विलाप किया था.
वह दिन था,
जब पडोसी के लड़की की विदाई थी ,
और दुल्हन से ज्यादा मुझे रुलाई
आई थी.
वह दिन था ,
जब प्रेम शब्द के सुनने मात्र से ,
जब भावों से ओत- प्रोत
मेरा ह्रदय,
सम्प्रेअषित करता था
सही संवेदनाओं को.
वह दिन था,
जब मेरा कुत्ता मारा था,
तिन दिन तक
अन्न जल त्याग कर
मैंने विलाप किया था.
वह दिन था,
जब पडोसी के लड़की की विदाई थी ,
और दुल्हन से ज्यादा मुझे रुलाई
आई थी.
वह दिन था ,
जब प्रेम शब्द के सुनने मात्र से ,
सारा वातावरण अहलादित हो उठता था.
और ये आज है ,
की क्यों भाव हीन ,निर्मम और निष्ठुर मेरा हृदय है,
शायद इसने जिंदगियों के ढेर होते देखा है
हसीं सपनो को चूर होते देखा है
घोर आस्था को मटिया मेट होते देखा है
की आज भावनाएं बनावटी , मौत समाचार और सच्चा प्यार किताबी प्रतीत होते है
करबद्ध इश्वर के समक्ष खड़ी, अपने को भावशून्य और उदासीन पाती हूँ ,
और ये आज है ,
की क्यों भाव हीन ,निर्मम और निष्ठुर मेरा हृदय है,
शायद इसने जिंदगियों के ढेर होते देखा है
हसीं सपनो को चूर होते देखा है
घोर आस्था को मटिया मेट होते देखा है
की आज भावनाएं बनावटी , मौत समाचार और सच्चा प्यार किताबी प्रतीत होते है
करबद्ध इश्वर के समक्ष खड़ी, अपने को भावशून्य और उदासीन पाती हूँ ,
कल ऐसा था , आज ऐसा है , कल कैसा होगा,
कल मैं थी, आज मैं हूँ, या कल मैं होंगी,
वास्तव में कोई क्या ये समझा भी पाया है
की बस ऐसे ही कल आज और कल में
जीता जाता है.
अनुपमा
Anupma Ji,
ReplyDeleteAchchi kavita likhi hai aapne. Bas itna dhyan rakhen ki yaddyapi bhavnaon ka aniyantrit hona hi kavita ko janm deta hai, parantu kavita ke srujan ke samaya lekhani ka aniyantrit hona kavya-shilp aur kaushal ke drishtikon se achha nahi mana jata. .
Kul milakar achha prayas hai ye, aur ise jaari rakhen...saabhaar
अति उत्तम भाभी , पर कविता का अंतिम भाग जीवन का सार होते होये भी उसके लिये उत्साह नहीं जगाता , ऐसा लगता है कोई खुद को ढून्ढ रहा है . ये यथार्थ है या स्वयं की खोज.
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